भारत में शपथपत्र का उल्लेख अलग अलग कानूनों में मिलता है लेकिन कहीं भी इसकी सटीक परिभाषा नहीं मिलती है। हालांकि शपथपत्र शब्द अत्यंत प्राचीन है। शपथ का अर्थ एक कमिटमेंट भी होता है मतलब किसी बात को करने या नहीं करने की प्रतिज्ञा लेना। जैसे एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति को यह कहता है कि अमुक दिन वह उसे पचास हजार रुपए अदा कर देगा। यदि उस कमिटमेंट को व्यवस्थित फॉर्म में लिखा जाए और संबंधित व्यक्ति से तस्दीक करवाया तब वह शपथपत्र का रूप ले लेता है।
सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 139 एवं आदेश 19 में शपथपत्र से संबंधित प्रावधान मिलते है। इस आलेख में इन प्रावधानों का उल्लेख किया जा रहा है-
सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 139 में निम्न प्रावधान है
शपथ पत्र के लिये शपथ किसके द्वारा दिलाई जाएगी-
इस संहिता के अधीन किसी भी शपथ पत्र की दशा में लिखा जाएगा।
(क) कोई भी न्यायालय या मजिस्ट्रेट, अथवा
(क-क) नोटरी अधिनियम, 1952 (1952 का 53) के अधीन नियुक्त नोटरी, अथवा
(ख) ऐसा कोई भी अधिकारी या अन्य व्यक्ति, जिसे उच्च न्यायालय इस निमित्त नियुक्त करे, अथवा किसी अन्य न्यायालय द्वारा, जिसे राज्य सरकार ने इस निमित्त साधारणतया या विशेष रूप से सशक्त किया है, नियुक्त किया गया कोई भी अधिकारी,अभिसाक्षी को शपथ दिला सकेगा।
सिविल प्रक्रिया संहिता की यह धारा शपथपत्र की परिभाषा तो नहीं देती है लेकिन उसे तस्दीक किसके द्वारा किया जाएगा इस संबंध में निर्देश दिए गए हैं। धारा 139 के अनुसार कोर्ट या मजिस्ट्रेट, या फिर नोटरी अधिवक्ता या फिर सरकार द्वारा नियुक्त किया गया शपथ आयुक्त शपथपत्र तस्दीक कर सकता है।
सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश 19 नियम 6 में शपथपत्र का फॉर्मेट और गाइडलाइंस से संबंधित प्रावधान मिलते है, जहां यह स्पष्ट किया गया है कि शपथपत्र कैसा होना चाहिए।
सिविल प्रक्रिया संहिता के यह प्रावधान निम्न है-
नियम 6 साक्ष्य के शपथपत्र का रूपविधान और मार्गदर्शक सिद्धान्त -
किसी शपथपत्र में नीचे दिए गए प्ररूप और अपेक्षाओं का अनुपालन होगा :
(क) ऐसा शपथपत्र ऐसी तारीखों और घटनाओं, जो किसी तथ्य या उससे संबंधित किसी अन्य विषय को साबित करने के लिए सुसंगत हैं, तक सीमित होगा और उसमें उन तारीखों और घटनाओं का कालानुक्रम अनुसार अनुसरण करना होगा जो किसी तथ्य या उससे संबंधित किसी अन्य विषय को साबित करने के लिए सुसंगत है;
(ख) जहां न्यायालय का यह मत है कि शपथपत्र केवल अभिवचनों का पुन: पेश किया जाना है या उसमें किन्हीं पक्षकारों के पक्षधनों के विधिक आधार अन्तर्विष्ट हैं, वहां न्यायालय, आदेश द्वारा शपथपत्र या शपथपत्र के ऐसे भागों को, जो वह ठीक और उपयुक्त समझे, काट सकेगा।
(ग) शपथपत्र का प्रत्येक पैरा, यथासंभव, विषय के सुभिन्न भाग तक सीमित होगा ।
(घ) शपथपत्र में यह कथन होगा कि :
(i) उसमें के कौन से कथन अभिसाक्षी ने निजी ज्ञान से किए गए हैं और कौन से सूचना और विश्वास के विषय हैं; और
(ii) सूचना या विश्वास के किसी विषय का स्त्रोत
(ङ) (i) शपथपत्र के पृष्ठों को पृथक् दस्तावेज (या किसी फाईल में अंतर्विष्ट विभिन्न दस्तावेजों को एक रूप में है) के रूप में क्रमवर्ती रूप से संख्यांकित करना होगा;
(ii) शपथपत्र संख्यांकित पैरा में विभाजित होगा;
(iii) शपथपत्र में सभी संख्याएं, जिसके अन्तर्गत तारीखें भी है, अंकों में अभिव्यक्त होंगी; और
(iv) यदि शपथपत्र के पाठ में निर्दिष्ट दस्तावेजों में से किसी को किसी शपथपत्र या किसी अन्य अभिवचन से उपाबद्ध किया जाता है तो ऐसे उपाबंधों और ऐसे दस्तावेजों, जिन पर निर्भर किया जाता है, की पृष्ठ संख्याएं देनी होगी।
नियम 6 पूरी तरह यह स्पष्ट कर देता है कि कोई भी शपथपत्र किस तरह बनाया जाएगा। असल में भारत में शपथपत्र से संबंधित कानूनों में सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश 19 नियम 6 के प्रावधान मील का पत्थर है और शपथपत्र के जनक यही प्रावधान है।
शपथपत्र की आवश्यकता-
शपथ पत्र का उपयोग तब किया जाता है जब किसी प्रकार की शपथ लेने की आवश्यकता होती है।
शपथपत्रो के कुछ सामान्य उपयोग इस प्रकार हैं:
कर्ज को लेकर विवाद
प्राप्त कानूनी दस्तावेजों की पुष्टि
नाम परिवर्तन सत्यापन
पहले बच्चे का प्रमाण पत्र